गया तीर्थ में पिण्डदान की महिमा एवं कथा । गया-माहात्मय तथा गया क्षेत्र के तीर्थों में श्राद्धादि करने का फल । गया तीर्थ की महिमा, पिण्डदान और श्राद्ध । Gaya Teerth ki Mahima, Pinddaan aur Shraddh । Glory of Gaya Pinddaan in Hindi
पूर्वकाल में गय नामक परम वीर्यवान एक असुर हुआ। उसने समस्त प्राणियों को संतप्त करने वाली महान दारुण तपस्या की। उसकी तपस्या से संतप्त देवगण उसके वध की इच्छा से भगवान श्रीहरि की शरण में गए। श्रीहरि ने उनसे कहा – आप लोगों का कल्याण होगा।
एक समय शिव जी की पूजा के लिए क्षीरसमुद्र से कमल लाकर गय नाम का वह बलवान असुर विष्णुमाया से विमोहित होकर कीकट देश में शयन करने लगा और उसी स्थिति में वह भगवान विष्णु की गदा के द्वारा मारा गया।
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उस गयासुर (Gayasur) के नाम पर ही गयातीर्थ (Gaya Teerth) प्रसिद्ध हुआ। यहाँ गदाधर भगवान विष्णु मुक्ति देने के लिए मुख्य देव के रूप में स्थित हैं। गयासुर के विशुद्ध देह में ब्रह्मा, जनार्दन, शिव, प्रपितामह स्थित हैं। विष्णु ने वहाँ की मर्यादा स्थापित करते हुए कहा कि इसका देह पुण्यक्षेत्र के रूप में होगा।
गया (Gaya) में श्राद्ध करने से ब्रह्महत्या, सुरापान, स्वर्ण की चोरी, गुरुपत्नी गमन और उक्त संसर्ग-जनित सभी महापातक नष्ट हो जाते हैं।
यहाँ जो भक्ति, यज्ञ, श्राद्ध, पिण्डदान अथवा स्नानादि करेगा, वह स्वर्ग तथा ब्रह्मलोक में जायेगा, नरकगामी नही होगा। पितामह ब्रह्मा ने गयातीर्थ (Gaya Teerth) को श्रेष्ठ जानकर वहाँ यज्ञ किया और ऋत्विक-रूप में आये हुए ब्राह्मणों की पूजा की।
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गया (Gaya) में श्राद्ध करने से पञ्च महापापों की निवृत्ति तो होती ही है, इसके साथ ही अन्य सम्पूर्ण पापों का भी विनाश होता है। जिनकी संस्काररहित दशा में मृत्यु हो जाती है अथवा जो मनुष्य पशु या चोर द्वारा मारे जाते हैं। जिनकी मृत्यु सर्प के काटने से होती है, वे सभी गया श्राद्ध (Gaya Shraddh) के पुण्य से उन्मुक्त होकर स्वर्ग चले जाते हैं। गया में पिण्डदान (Gaya Pinddaan) करने मात्र से पितरों को परमगति प्राप्त होती है।
गया तीर्थ में पितरों के लिए पिण्डदान (Gaya Pinddaan) करने से मनुष्य को जो फल प्राप्त होता है, सौ करोड़ वर्षों में भी उसका वर्णन नहीं किया जा सकता है। यहाँ तक कहा गया है कि गया (Gaya) गमन मात्र से ही व्यक्ति पितृऋण से मुक्त हो जाता है – ‘गयागमनमात्रेण पितृणामनृणो भवेत।’
ब्रह्मज्ञान, गयाश्राद्ध (Gaya Shraddh), गोशाला में मृत्यु तथा कुरुक्षेत्र में निवास – ये चारो मुक्ति के साधन हैं।
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कहते हैं गयाक्षेत्र (Area of Gaya) में भगवान विष्णु पितृदेवता के रूप में विराजमान रहते हैं। पुण्डरीकाक्ष उन भगवान जनार्दन का दर्शन करने पर मनुष्य अपने तीनों ऋणों से मुक्त हो जाता है।
धर्म-शास्त्रों के अनुसार मनुष्यों पर तीन ऋण माने गए हैं – देव ऋण, ऋषि ऋण एवं पितृ ऋण।
गया (Gaya) क्षेत्र में कोई ऐसा स्थान नही है, जहाँ पर तीर्थ (Pilgrim) नही है। पाँच कोश के क्षेत्रफल में स्थित गयाक्षेत्र में जहाँ-तहाँ भी पिंडदान करने वाला मनुष्य अक्षयफल (Renewable fruit) को प्राप्त कर अपने पितृगणों को ब्रह्मलोक प्रदान करता है।
क्या खूब लिखा हैं आपने ऐसी जानकारी हमारे साथ शेयर करते रहें|
राजेश जी, ब्लॉग पर आने व अपना विचार व्यक्त करने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद और आभार।
Bahut aachi jankari prastut ki gai hai… aapka dhanyawaad
धन्यवाद प्रमोद जी। 🙂 🙂
आपके लेख को पढकर गया तीर्थ स्थल के बारे मे और जानने को मिला । गया के बारे मे रोचक तथ्य बताएं है वह काबिले तारीफ है । इतना बढिया लेख साझा करने के लिए धन्यवाद ।
सादर आभार और धन्यवाद बबीता जी, आपको हमारा यह लेख पसंद आया और जानकर ख़ुशी हुयी कि इस लेख के माध्यम से आपकी जानकारी में वृद्धि हुयी। 🙂
NICE STORY….THX FOR THIS
धन्यवाद कविता जी। 🙂 🙂
Indian tradition is Indian strength very nice post about it.
कमलेश जी, ब्लॉग पर अपना विचार व्यक्त करने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद और आभार। 🙂
पिंडदान की ऐसी जानकारी मैंने पहले बार पढ़ी इसके लिए धन्यवाद
धन्यवाद अमित जी। 🙂 🙂
Bahut hi rochak jankari hai
धन्यवाद अन्नू जी। 🙂