माता-पिता की सेवा – भगवान की सेवा । नर सेवा नारायण सेवा । Service to Parents is Service to God in Hindi
वास्तव में भगवान लक्ष्मी-नारायण ही सबके माता-पिता हैं। इस दृष्टि से संसार में हमारे जो माता-पिता हैं, वे साक्षात् लक्ष्मी-नारायण के ही स्वरुप हैं। अतः पुत्र का कर्तव्य है कि वह माता-पिता (mother-father) की ही सेवा में लगा रहे।
श्री भीष्म जी ने पिता की सुख-सुविधा, प्रसन्नता के लिए अपनी सुख-सुविधा का त्याग कर दिया और आजीवन ब्रह्मचारी रहने की प्रतिज्ञा ले ली। उन्होंने कनक-कामिनी (राज्य-स्त्री, यहाँ पर ‘कनक-कामिनी’ का मतलब ‘राज्य और स्त्री’ से है) दोनों का त्याग कर दिया। इससे प्रसन्न होकर पिता ने उनको इच्छामृत्यु का वरदान दिया। वे इच्छामृत्यु हो गए कि जब चाहें, तभी मरें। उनको ऐसी सामर्थ्य पिता की सेवा से प्राप्त हो गयी। श्रीराम ने पिता की आज्ञा का पालन करने के लिए राज्य, वैभव, सुख-आराम आदि सबका परित्याग कर दिया।
माता-पिता से बड़ा कौन हो सकता है?
इन्हीं की सेवा कर लो।
सभी तीर्थ हो जायेंगे।
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पुत्र माता-पिता (mother-father) की कितनी ही सेवा (service) करे तो भी वह माता-पिता के ऋण को चुका नहीं सकता। कारण कि जिस मनुष्य शरीर से अपना कल्याण हो सकता है, जीवनमुक्ति मिल सकती है, भगवत्प्रेम प्राप्त हो सकता है, भगवन का मुकुटमणि बन जाय – इतना ऊँचा पद प्राप्त हो सकता है, वह मनुष्य शरीर हमें माता-पिता (parents) ने दिया है। उसका बदला पुत्र कैसे चुका सकता है? नहीं चुका सकता।
माता-पिता की सेवा का तात्पर्य कृतज्ञता में है। माता-पिता ने बच्चों के लिए जो कष्ट सहे हैं, उसका पुत्र पर ऋण है। उस ऋण को पुत्र कभी उत्तर नहीं सकता। माँ ने पुत्र की जितनी सेवा की है, उतनी सेवा पुत्र कर ही नहीं सकता।
भगवान न दिखाई देने वाले माता-पिता होते हैं,
किन्तु माता-पिता दिखाई देने वाले भगवान होते हैं!
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अगर कोई पुत्र यह कहता है कि मैं अपनी चमड़ी से माँ के लिए जूती बना दूँ तो उससे हम पूछते है कि यह चमड़ी तुम कहाँ से लाये? यह भी तो माँ ने ही दी है! उसी चमड़ी की जूती बनाकर माँ को दे दी तो कौन-सा बड़ा काम किया? केवल देने का अभिमान ही किया है!
ऐसे ही शरीर खास पिता का अंश है। पिता के उद्योग से ही पुत्र पढ़-लिखकर योग्य बनता है, उसको रोटी-कपड़ा मिलता है। इसका बदला कैसे चुकाया जा सकता है। अतः केवल माता-पिता की सेवा करने से उनकी प्रसन्नता लेने से वह ऋण अदा तो नहीं होता, पर माफ़ हो जाता है।
पता नहीं कैसे पत्थर की मूर्ति के लिए जगह बना लेते हैं घर में वो लोग,
जिनके घर में माता-पिता के लिए कोई स्थान नहीं होता।
शिक्षा | Moral
अतः माता-पिता की सेवा स्वयं भगवान की सेवा है। इसलिए हमें अपने माता-पिता की हर बात का आदर करते हुए, उनके आदेशों का पालन करना चाहिए।
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bahut hi badhiya article hai aapka. sauch me mata – pita hamare liye bhagwan ka roop hai. agar mata – pita ki seva kar di jaaye to wah sabhi seva ke barabar hai. good post. thanx for sharing a nice article.
सुरेंद्र जी ब्लॉग पर आने व हमारा उत्साह बढ़ने के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद् और आभार।
Ji Bahut Badhiya..Kya Likha hai aapne .bahut khoob.
उत्साहवर्धन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद्, सुप्रिया जी। 🙂
Aajkal Loag Paiso ke peeche itna bhag rahe hai ke apne Mata aur Pita ka Khayal bilkul hi nahi rakhte hai. Mata, pita ki wajah se hi hume jeewan mila hai, aur marte dam tak hume unki sewa karni chahiye.
Bahut hi badhiya blog likha hai aapne, ummed karta hu ke loag isse kuch seekh le sake.
बिलकुल सही कहा आपने। ब्लॉग पर आने व अपना विचार व्यक्त करने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद् व आभार। 🙂
बहुत अच्छी पोस्ट है. मुझे नहीं लगता कि माता पिता से बढ़कर कोई हो सकता है. वो सारा जीवन निस्वार्थ प्रेम करते हैं.
प्रियंका पाठक जी, बहुत ही सही बात कही है आपने। “माता-पिता” यह शब्द ही ऐसा है इस ब्रह्माण्ड में, जहाँ कभी उम्मीद खत्म ही नहीं होती है इंसान की।
nice post. माता पिता की सेवा सबसे बड़ा पुण्य है | Thanks
धन्यवाद बबिता सिंह जी।
Bahut accha lekh likha hai aapne! aajkal ese lekhon ki bahut jarurat hai…..dhanyavad!
उत्साहवर्धन के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद, अमूल जी।
exellent
Thanks DeshRaj ji 🙂
No comments
🙂
great post aur bahut hi achha hai sbko mata-pita ki seva karni chahiye. agar nhi karenge to apko baad me bahut pachtava hota hai.
बिलकुल सही कहा आपने सूरज जी, मैं आपकी बात से सहमत हूँ।
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thanks for being notice us
Thanks Kumar Ji. 🙂
सही में माता-पिता से बढ़कर इस संसार में कुछ भी नहीं है। बहुत बढिया आलेख।
धन्यवाद, ज्योति जी।
sahi main maata pita se badh kr is duniya main dusra kuchh nahi hai
100% true. 🙂
very useful article , sir
धन्यवाद, Sidhu Ji.
Yahi soch sab bacho me honi chaiye. Bahot acha likha hai.
धन्यवाद, Krunal Ji.
Bahut acha likha hai apne
धन्यवाद, Prabhjit Ji.
Thanks yr mata pita ki seva karna sabse bada dharam hota hai
धन्यवाद, Babulal Ji.
bahut hi achhi post hai aapki hindiindia sir
aapki is post se bahut kuch sikh sakta hai
धन्यवाद, Ajay Ji.
पता नहीं कैसे पत्थर की मूर्ति के लिए जगह बना लेते हैं घर में वो लोग,जिनके घर में माता-पिता के लिए कोई स्थान नहीं होता।
Bohot Achi Post likhi hai apne thanks for that !
प्रोत्साहन के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद प्रिया जी।
Very nice portal,,,Good work..,,,,,,,,(team book my sawari)
प्रोत्साहन के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद Sanjay Ji. And Most Welcome on this portal.
bahut hi badhiya likha…… ishvar bhakti bhi tb tk koi maayine nahi rkhti agar Mata-Pita ko hi na khush rkha jaye…..
Bilkul sahi kaha aapne Nikhil Ji. Apne vichar vyakt karne ke liye aapka sadar aabhar.
Bhut acchha article h very good
धन्यवाद Sarvesh जी। 🙂 🙂
Hame dilo jaan se apne mata pita ki sewa karni chahiye
धन्यवाद अन्नू जी। 🙂
sahi kaha hai sir aapne ekdam 🙂
प्रेरणादायक एवं उत्कृष्ट आलेख हेतु कोटिशः साधुवाद.
एक वृद्धाश्रम के द्वार पर लिखा था यह अप्रतिम सुविचार..
नीचे गिरे पत्तों पर, अदब से चलना ज़रा
कभी कड़ी धूप में, इनसे ही पनाह मांगी थी
Hume pure dil se aur pura man lga k apne mata pita ki sewa aur aadar karna chahiye.
sir aapne bahut aacha maa papa pe article lika hai par ham log padhte jarur hain sewa nhi karte
@Subash ji, blog par aane wa apna vichar rakhne ke liye saadar aabhar.